शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती का 98 वर्ष की अवस्था में निधन, सैदपुर से था उनका गहरा नाता, पढ़ें उनसे जुड़ी हर एक खबर -



आकाश बरनवाल



सैदपुर। द्वारकापीठ व ज्योर्तिमठ के शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती का रविवार को 92 वर्ष व 9 दिन की अवस्था में निधन हो गया। वो शारीरिक रूप से काफी अस्वस्थ हो चुके थे। जिसके बाद पूरे जनपद समेत देश भर में शोक का माहौल है। अभी इसी माह में ही उनका जन्मदिन मनाया गया था। सैदपुर के खानपुर स्थित बभनौली में मुक्तिकुटी में उनका आश्रम है, जहां पूरा गांव शोकग्रस्त हो गया है। ये मुक्तिकुटी उनकी विशेष स्थली है। जहां पर भवन निर्माण के बाद कांग्रेस नेत्री सोनिया गांधी भी आ चुकी हैं। वो उनकी शिष्या थीं। उनके अलावा कांग्रेस के दिग्गज नेता व एमपी के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह, राज्यपाल रहे अजीज कुरैशी आदि भी शंकराचार्य के शिष्य थे। शंकराचार्य बभनौली के इसी मुक्तिकुटी में आठ दिवसीय महोत्सव आयोजित कराया था। वहां 19 मार्च 2019 को रात 11 बजे रासलीला देखते समय अचानक उनकी तबीयत बिगड़ गई। जिसके बाद उन्हें वाराणसी ले जाया गया था। मध्य प्रदेश के सिवनी जनपद के छोटे से गांव दिनारी में 2 सितंबर 1924 को जन्मे स्वरूपानंद सरस्वती के पिता धनपति उपाध्याय व मां गिरजा देवी ने खूब जश्न मनाया था। स्वरूपानंद सरस्वती को बचपन में उन्हें सभी पोथी राम कहकर पुकारते थे। स्वरूपानंद सरस्वती ने महज 9 साल की उम्र में घर छोड़ दिया और धार्मिक यात्राएं शुरू कर दीं। इसके बाद 1950 में ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य स्वामी ब्रह्मानंद सरस्वती से उन्होंने दंड सन्यास की दीक्षा ली। जिसके बाद 1973 में वो द्वारका पीठ के शंकराचार्य घोषित किए गए। उन्होंने साई बाबा की पूजा के विरोध में बयान दिया था, जिसके बाद पूरे देश में विवाद हुआ था। इसके अलावा उन्होंने ये भी कहा था कि जहां ताजमहल है, पहले वहां शिव मंदिर था। उन्होंने एक पत्रकार को इसलिए थप्पड़ मार दिया था, क्योंकि उसने नरेंद्र मोदी के पीएम बनने को लेकर एक सवाल पूछ दिया था। कांग्रेस के खास लगाव रखने के लिए मशहूर शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती ने पीएम मोदी को लेकर बयान दिया था कि नरेंद्र मोदी हिंदुत्व के लिए बड़ा खतरा हैं। उन्होंने पीएम मोदी के पहले लोकसभा चुनाव के दौरान हिंदुओं को आगाह करते हुए मोदी को न चुनने की अपील की थी। कहा था कि मोदी को वेद का ज्ञान नहीं है। पहले उन्हें वेद पढ़ना चाहिए। शंकराचार्य का सैदपुर के खानपुर स्थित मुक्तिकुटी से खास लगाव था। भारत की आजादी की लड़ाई में स्वरूपानंद सरस्वती ने भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था और 1942 में अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन को पूरे प्रदेश में धार दी थी। इचवल स्थित मुक्तिकुटी उस वक्त में स्वरूपानंद सरस्वती समेत क्रांतिकारियों का गुप्त अड्डा हुआ करता था। जिसके चलते उन्हें कई बार जेल तक जाना पड़ा था। स्वरूपानंद सरस्वती की अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ अपील पर काशी हिंदू विश्वविद्यालय के हजारों छात्र उनके साथ जुड़ गए थे। उस दौर में वो डाकघर आदि लूटकर लोगों में बांट दिया करते थे। साथ ही रेल पटरियां उखाड़ना आदि घटनाओं को अंजाम देते थे। जिससे अंग्रेज भी त्रस्त हो गए थे। आजादी के लिए उनकी इस लड़ाई से परेशान अंग्रेजी हुकूमत ने एक अंग्रेज अधिकारी को स्वरूपानंद सरस्वती को देखते ही गोली मारने का आदेश देकर भेजा। जिसके बाद वो अपने 40 साथियों संग गंगा में कूदकर फरार हो गए थे। हालांकि बाद में पकड़े गए तो उन्हें 9 माह की सजा मिली। जिसे उन्होंने जयप्रकाश नारायण के साथ काटा। जेल में भी वो देशभक्ति आदि के प्रवचन देते थे।



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